2019 में सांप्रदायिक दंगे: देश में सांप्रदायिक विमर्श का बोलबाला

 





































2019 में सांप्रदायिक दंगे: देश में सांप्रदायिक विमर्श का बोलबाला


          - इरफ़ान इंजीनियर, नेहा दाभाड़े, सूरज नायर


व्यवहारगत हिंसा और संरचनात्मक हिंसा, अंततः सांप्रदायिक दंगों और माब लिंचिंग के रूप में शारीरिक हिंसा का स्वरुप ग्रहण कर लेती हैं. सन 2019 में यही हुआ. सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म (सीएसएसएस) ने पूरे साल सांप्रदायिक हिंसा की वारदातों पर नज़र रखी. सीएसएसएस ने पांच अग्रणी समाचारपत्रों - द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, इन्कलाब और सहाफत - के मुंबई संस्करणों में प्रकाशित समाचारों को अपने आंकलन का आधार बनाया. इन समाचारपत्रों में छपी ख़बरों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 2019 में सांप्रदायिक हिंसा की 25 घटनाएं हुईं, जो कि 2018 में इस तरह की घटनाओं (38) से कम थीं.


यद्यपि सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में कमी आई है तथापि हिन्दू श्रेष्ठतावादियों की विचारधारा से प्रेरित सांप्रदायिक विमर्श में तनिक भी कमी नहीं हुई है. इस विमर्श को बढ़ावा देने के लिए नए मुद्दों का इस्तेमाल हो रहा है. इनमें शामिल हैं नागरिकता संशोधन अधिनियम, जो मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है; एनआरसी; कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 का उठाया जाना व वहां के नागरिकों के परस्पर संवाद पर प्रतिबन्ध और अयोध्या में राममंदिर का निर्माण. 


सांप्रदायिक दंगे और माब लिंचिंग


जैसा कि पहले कहा चुका है, यद्यपि देश में सांप्रदायिक दंगों की घटनाओं में कमी आयी है तथापि इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि साम्प्रदायिक हिंसा कम हुई है. सांप्रदायिक हिंसा एक व्यापक अवधारणा है जिसमें दंगों के अलावा लिंचिंग की घटनाएं भी शामिल हैं. उपरलिखित पांच समाचारपत्रों के मुंबई संस्करणों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार, 2019 में सांप्रदायिक दंगे कम हुए परन्तु लिंचिंग की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई. माब लिंचिंग के ज़रिये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढावा दिया जा रहा है. ऐसी घटनाओं में मुख्यतः मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है और बहाने होते हैं गौरक्षा, लव जिहाद और यहाँ तक कि चोरियां और बच्चों का अपहरण. इस रपट में सन 2019 में हुई ऐसी सांप्रदायिक हिंसा, जिसका प्रकटीकरण शारीरिक हिंसा के रूप में हुआ, का जायज़ा दो हिस्सों में लिया गया है - सांप्रदायिक दंगे और माब लिंचिंग.


मुख्य बिंदु:


मृतकों और घायलों का धर्म के आधार पर वर्गीकरण


उपरलिखित समाचारपत्रों के अनुसार, सन 2019 की 1 जनवरी से लेकर 31 दिसंबर तक, देश में 25 सांप्रदायिक दंगे हुए, जिनमें कुल आठ लोग मारे गए. इनमें से तीन हिन्दू थे, तीन मुसलमान और दो का धर्म नहीं बताया गया. दो हिन्दुओं की मौत महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में हुई. महाराष्ट्र में दो गुटों के बीच विवाद ने सांप्रदायिक रूप ग्रहण कर लिया. राज्य के अमरावती में जुआ खेलने के दौरान झगडा शुरू हुआ, जिसमें श्याम पहलवान नामक व्यक्ति मारा गया. इसके बाद दंगे भड़क उठे जिनमें दो मुसलमान अपनी जान से हाथ धो बैठे. उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में पतंग उड़ाने के दौरान बच्चों के बीच हुए विवाद ने सांप्रदायिक रंग अख्तियार कर लिया. दोनों गुट एक दूसरे से भिड़ गए. एक समूह के लोग राज कुमार के घर में घुस गए और उस पर और उसके परिवारजनों पर हमला कर दिया. राज कुमार को गंभीर चोटें आईं और अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गयी. बिहार के जहानाबाद जिले में विष्णु यादव तब मारा गया जब मूर्तियों के विसर्जन के दौरान, जुलूस पर पत्थर फेंके गए. जमीरउद्दीन नामक मुस्लिम युवक असम के हैलाकांडी में मारा गया. हिंसा की शुरुआत जुमे की नमाज़ के दौरान सड़कों पर जाम लगने के मुद्दे से हुई. सांप्रदायिक दंगों की इन 25 वारदातों में कुल मिलकर 54 व्यक्ति घायल हुए.


गिरफ्तार किये गए व्यक्तियों का धर्म के आधार पर वर्गीकरण


सांप्रदायिक दंगों की 25 वारदातों के सिलसिले में कुल 48 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया. इनमें से 47 व्यक्तियों के धर्म का उल्लेख समाचारपत्रों में नहीं किया गया है. एक व्यक्ति को मुसलमान बताया गया है.


क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण


सांप्रदायिक दंगों की सबसे ज्यादा घटनाएं उत्तरप्रदेश में हुईं. कुल 25 घटनाओं में से नौ यूपी में हुईं. इससे राज्य के मुख्यमंत्री का यह दावा गलत सिद्ध होता है कि भाजपा के शासन में आने के बाद से उत्तरप्रदेश में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है. यूपी के बाद महाराष्ट्र का नंबर था, जहाँ 2019 में चार सांप्रदायिक दंगे हुए, मध्यप्रदेश, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में दो-दो और कर्नाटक, हरियाणा, असम, दिल्ली, बिहार और पश्चिम बंगाल में एक-एक घटनाएं हुईं.


इन आकड़ों से पता चलता है कि सांप्रदायिक दंगे मुख्यतः देश के उत्तरी भागों में हुए जहाँ पहले से ही विभिन्न समुदायों के बीच गहरी विभाजक रेखाएं खिंची हुईं हैं.


परन्तु यह मानना गलत होगा कि दक्षिणी और पूर्वी भारत, सांप्रदायिक हिंसा की समस्या से मुक्त है. वहां दंगों की संख्या भले ही कम रही हो परन्तु नफरत से लबरेज भाषणों और साम्प्रदायिकता के ज़हर से यह क्षेत्र भी मुक्त नहीं था.


दंगे कैसे शुरू हुए?


नौ सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत धार्मिक त्योहारों और जुलूसों के दौरान हुई. पूर्व के वर्षों की तरह, सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए आक्रामक नारेबाजी, दूसरे समुदाय को भड़काने के लिए जानबूझकर तेज आवाज़ में संगीत बजाना और धार्मिक जुलूस निकलने के लिए ऐसा रास्ता चुनना जिससे धार्मिक समुदायों के बीच तनाव को बढाया जा सके का इस्तेमाल किया गया. इस प्रकृति के सांप्रदायिक दंगों में से चार उत्तरप्रदेश में हुए, दो राजस्थान में, एक महाराष्ट्र में और एक-एक मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में.


सन 2018 की तरह 2019 में भी, धार्मिक त्योहारों और जुलूसों का इस्तेमाल, सांप्रदायिक तनाव और हिंसा भड़काने के लिए किया गया. कांवड़ियों को राज्य द्वारा इस तरह सुरक्षा उपलब्ध करवाई जाती है जिससे यह सन्देश जाता है कि पुलिस और प्रशासनिक तंत्र उनके पक्ष में है. उत्तरप्रदेश के बदायूं जिले में कांवड़ियों के जुलूस पर पत्थरबाज़ी की गई. यह जुलूस उस समय निकल रहा था जब ईद की नमाज़ अदा की जा रही थी. आगरा में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने मुसलमानों द्वारा सड़क पर नमाज़ अदा किये जाने का विरोध किया. बजरंग दल के करीब 70 कार्यकर्ताओं को उस सड़क को पार करने की इज़ाज़त नहीं दी गई जहाँ मुसलमान ईद की नमाज़ पढ़ रहे थे. उन्होंने धमकी दी कि वे सड़क पर बैठ कर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे. इसी राज्य के बलरामपुर जिले में दशहरा के दिन मूर्तियों के विसर्जन के दौरान संगीत बजाये जाने को लेकर विवाद हुआ.


महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में कांवड़ यात्रियों का नमाज़ पढ़ रहे मुसलमानों से विवाद हुआ. जयपुर में सांप्रदायिक हिंसा तब शुरू हुई जब कुछ मुसलमानों ने दिल्ली जाने वाले राजमार्ग पर चक्काजाम किया और हरिद्वार जा रही एक बस पर पथराव किया. राजस्थान के ही टोंक जिले में विजयादशमी के जुलूस पर पत्थाबाज़ी हुई, जिसके बाद तोड़-फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुईं.


मध्यप्रदेश के शाजापुर में मुहर्रम के जुलूस पर पत्थर फेंके गए. इसके बाद हुई हिंसा में कुछ दो-पहिया वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. बिहार के जहानाबाद जिले में हिंसा तब भड़क उठी जब अरवल मोरे के निकट मूर्तियों को विसर्जन के लिए ले जा रहे जुलूस पर एक पत्थर फेंका गया. श्रद्धालुओं ने आरोप लगाया कि पत्थर फेंकने वाला दूसरे समुदाय के तमाशबीनों में से एक था. इसके बाद दोनों समुदायों की भीड़ के बीच जम कर पत्थरबाज़ी हुई, जिसमें 14 लोग घायल हो गए. इस हिंसा में दो लोगों की जान चली गई. उन्मादी भीड़ ने कई दुकानों को आग के हवाले कर दिया. स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए प्रतिबंधात्मक धाराओं का प्रयोग किया गया. पश्चिम बंगाल के पुरबा मेदिनीपुर में क्रिसमस के उत्सव के दौरान एक भीड़ चर्च में घुस कर ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाने लगी. भीड़ ने चर्च में तोड़-फोड़ की और पास्टर की गाड़ी में आग लगा दी. पुलिस के अनुसार, कम से कम एक व्यक्ति को गंभीर और कई अन्यों को मामूली चोटें आईं. शुरूआती जांच में सामने आया कि उपद्रवी भाजपा से जुड़े हुए थे.


यद्यपि धार्मिक त्योहार और जुलूस, समाचारपत्रों की रपटों के अनुसार, दंगे भड़कने का प्रमुख कारण रहे परन्तु अन्य कारणों ने भी ‘ट्रिगर’ का काम किया. ये सभी घटनाएं सांप्रदायिक हिंसा की प्रकृति को समझने में हमारी मदद कर सकती हैं. गौ हत्या/ बीफ के सेवन की अफवाहों और ‘दूसरे समुदाय’ के सदस्यों द्वारा महिलाओं के साथ छेड़छाड़ भी हिंसा भड़काने का बहाना बनतीं रहीं हैं. इन दिनों एक नयी प्रवृति देखने को मिल रही है. इसमें मुसलमानों पर हमले किये जाते हैं और उन्हें पाकिस्तान जाने के लिए कहा जाता है. इसका उद्देश्य यह सन्देश देना होता है कि मुसलमान दूसरे दर्जे के नागरिक हैं और यह देश उनका नहीं है. गुडगाँव में इसी तरह की एक धक्का पहुँचाने वाली घटना में होली की शाम, करीब 20-25 लोगों ने एक मुस्लिम परिवार और उनके मेहमानों की उनके घर में घुस कर लाठियों से पिटाई की. इसके पहले, आरोपियों ने मुस्लिम परिवार की कुछ बच्चों, जो बाहर क्रिकेट खेल रहे थे, से पाकिस्तान जाने को कहा था.


राज्य की भूमिका


इस तरह की घटनाओं में राज्य की भूमिका एक ऐसी संस्था की रही है जो हिंदुत्व की विचारधारा में विश्वास करती है और हिन्दू श्रेष्ठवादी है. सत्ताधारियों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषणों से प्रेरित और प्रोत्साहित हो कर राज्य तंत्र के सदस्य ऐसे तत्वों को संरक्षण देते हैं. पुलिस न केवल हिंसा करने वालों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही नहीं करती बल्कि कई मामलों में वह स्वयं हिंसा में भाग लेती है. सीएए के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के दौरान इस तरह की कई घटनाएं सामने आईं. दिसंबर 2019 की 15 तारीख को पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में प्रवेश कर विद्यार्थियों को लाठियों से पीटा और उन्हें खदेड़ने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया. ऐसा लगता है कि पुलिस, सत्ताधारी दल की व्यक्तिगत सेना बन गई है जो उसके कहने पर जब चाहे तब मुसलमानों या निर्दोष विद्यार्थियों पर बल प्रयोग करती है. यह बल प्रयोग कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए नहीं किया जाता. हिंसा की घटनाओं की जांच इस तरह से की जाती है जिससे आरोपी आसानी से बरी हो जाएं.


न्यायपालिका भी इस तरह के प्रकरणों की सुनवाई सुस्त और ढीले-ढाले ढंग से करती है, जिसके न केवल न्याय मिलने में विलम्ब होता है वरन कभी-कभी न्याय मिल ही नहीं पाता. उत्तरप्रदेश में सरकार और पुलिस की भूमिका विशेष रूप से चिंताजनक रही है. सीएए के विरोध के दौरान पहले मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाया गया जिसके चलते 23 मौतें हुईं. इसके बाद, मुस्लिम समुदाय से सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए कहा जा रहा है. इस सारी कार्यवाही का लक्ष्य सीएए के का विरोध करने वालों के मनोबल को तोडना है.


नफरत और हिंसा को रोकने की बजाय, राज्य अपने ही नागरिकों पर क्रूर हमले कर रहा है.


निष्कर्ष


सन 2019 में हमने राज्य का वीभत्स सांप्रदायिक चेहरा देखा. राज्य ने अपने सभी अंगों का प्रयोग समाज को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत करने के लिए किया. साम्रदायिक विमर्श को मजबूती देने के लिए अब सांप्रदायिक दंगों के साथ-साथ कई अन्य तरीकों का प्रयोग भी किया जा रहा है.


परन्तु इस अँधेरे में प्रकाश की एक किरण भी है. और वह है सीएए के विरोध में सभी धार्मिक समुदायों के सदस्यों का एक साथ उठ खड़ा होना. विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्यों ने कंधे से कन्धा मिलकर संविधान को कमज़ोर करने के प्रयासों और भेदभावपूर्ण कानूनों का जम कर विरोध किया. यह विरोध पुलिस और सरकार के इस आन्दोलन को कुचलने के सभी प्रयासों के बावजूद जारी रहा. इस तरह की एकता और प्रतिबद्धता निश्चित तौर पर सांप्रदायिक हिंसा, सांप्रदायिक सोच और विघटनकारी ताकतों से लोहा लेने में प्रभावशाली भूमिका अदा करेगी. (अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)


 संपादक महोदय,


                       कृपया इस सम-सामयिक लेख को अपने प्रतिष्ठित प्रकाशन में स्थान देने की कृपा करें.                             


             -एल. एस. हरदेनिया





































 


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